जैसा की हम सब जानते है की बीते कुछ सालो में डिप्रेशन बीमारी आम बात हो गई है। आये दिन डिप्रेशन के बीमारी से लोग कुछ न कुछ गलत कदम उठा लेते है (नशा करना, मदीरा का सेवन, जनलेवा पदार्थो का सेवन, इत्यादि)
बीते कुछ सालो में हमे, मीडिया में भी डॉक्टर और साइकोलॉजिस्ट इस बीमारी के बारे में जानकारी देते हैं। डिप्रेशन बीमारी धीरे-धीरे अपना दायरा बढ़ा रही है। बच्चे से लेकर युवा और बुजुर्ग, हर उम्र के लोगों में यह बीमारी बहोत तेजी से बढ़ती जा रही है। हालांकि समस्या यह है कि भारत में लोग इसे बीमारी नहीं मानते, जबकि यह बहुत गंभीर और बड़ी मानसिक बीमारी है। डिप्रेशन का सीधा मतलब यह है कि, आपने जो उम्मीद, आशा या भरोसा किया था वह कहीं न कहीं पूरा न हो सका।
आइये जानते है की डिप्रेशन आखिर है क्या:-
जब हम किसी चीज या बात को लेकर बहोत सोचने है तो - दो चीजे दिमाग में आती है सकारात्मक विचार और नकारात्मक्त विचार। जब हम किसी भी बात के बारे में सोचते है तो नकारात्मक्त विचार - सकारात्मक विचार से अधिक आते है, और हम नकारात्मक्त विचारो को ही सही मानकर उसके बारे में ही सोचते रहते है, और यही सोच कब हम पर हाबी हो जाता है हमें पता ही नहीं चलता, और हमें नीद न आने, भूख न लगने, तथा लोगो के बिच बात न करने की बीमारी लग जाती है और ये डिप्रेशन की बीमारी का प्रथम चरण होता है।
जो लोग डिप्रेशन की बीमारी के शिकार होते हैं, वे लोगों के साथ घुलना-मिलना पसंद नहीं करते। और उन्हे अकेले रहना अच्छा लगने लगता है । इससे उनमें नकारात्मक्त विचार बढ़ती है। डिप्रेशन इतना घातक है कि अगर कोई नकारात्मक्त सोच को लगातार कई दिनों तक सोचता है और उसे फील करता है, तो उसका जीवन निराशा से भर सकता है। जानलेवा विचार आने लगते हैं।
कैसे जाने कि मुझे डिप्रेशन है
- डिप्रेशन एक मूड डिसऑर्डर है। अगर जीवन के प्रति निराशा बढ़ती जा रही है, तो समझिए कि आप डिप्रेशन के रास्ते की ओर बढ़ रहे है।
- खुद को गलत और दोषी मानना, आत्म विश्वास में कमी, अपने आप से घृणा करना, आगे की जिंदगी का रास्ता का चयन न कर पाना, ये कुछ ऐसी सोच है, जिससे व्यक्ति हमेशा घिरा रहता है।
- अगर किसी व्यक्ति में हमें यह देखना है कि वह डिप्रेशन का शिकार है या नहीं, तो सबसे बेहतर तरीका यह है कि आप उसके दिनचर्या को फॉलो करें। मतलब अगर वह पहले, खेलने, किताबे पढ़ने, दोस्तों के साथ बात करने में इनटरेस्ट दिखा रहा था और अब नहीं दिखा रहा तो समझिए कि मामला गड़बड़ है।
- इसका एक और लक्षण है कि इसमें नीद ना आने की समस्या आएगी। मतलब ज्यादा नकारात्मक बातों को सोचने से देर रात तक जागना। व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। व्यक्ति शांत और बुझा-बुझा रहने लगता है या फिर गुस्सा और चिड़चिड़ापन का शिकार हो जाता है।
क्या है इसके कारण
डिप्रेशन की बीमारी का सबसे बड़ा कारण है हमारे सोचने का तरीका। हमने अपने दिनचर्या में भौतिक चीजों से अपने आप को इतना घेर रखा है, कि असल जीवन क्या होती उसे ही भूल बैठे हैं। जीवन वो नहीं है कि आप हमेशा प्यार, पैसे और चीजों के पीछे भागते रहें। ये जरूरी तो है लेकिन यह जीवन नहीं है। इसलिए अपनी जिंदगी को भौतिक चीजों पर डिपेंड मत कीजिए, बल्कि कुछ समय भौतिक चीजों के बिना जीने की कोशिश कीजिए। क्योंकि जहां डिपेंडेंसी होगी वहां तनाव भी होगा और खोने का डर भी होगा। और जब ऐसा होता है तो व्यक्ति डिप्रेशन की बीमारी का शिकार होने लगता है।
हर चीज की आदत होती है, अगर आपने चीजों को नकारात्मक तरीके से सोचने की आदत बनाई हुई है, तो आपके काम परिणाम भी नकारात्मक ही होंगे। सही तरीका है कि, जो चीज सच्ची है उसे सच्चे रूप में लें और चीज सच्ची नहीं है उसके बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। इस दुनिया में सच क्या है और झूठ क्या है, खाली हाथ आये है खाली हाथ जाना है।
आसा करता हु की हमारा प्रयास आपको सकारात्मक विचार करने में सहायता प्रदान करेगा, धन्यवाद। ...
1 टिप्पणियाँ
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